Centered Image

About Us

 WELCOME TO OUR NGO

“Radha Madhav Seva Charitable Trust is a charitable trust registered in 2014 under the provisions of the Indian Trust Act and Section “80G” of the Income Tax Act 1961. The Trust works all over India of the world for various welfare activities. Hit Umesh Chandra Sharma Jee “Salil” Brijwasi is a melodious Sankirtanist, and a Humble humanitarian. He is awakened Nimbaraki, and, devotee of Shri Radha sarveshwar, Optimistic and spell binder Orator of Bhagawat Katha, and is popularly known as vyas by the loved one’s.

About Us

Hit Umesh Chandra Sharma Jee “Salil” Brijwasi

Bhagawat Kinkar Hit Umesh Chandra Sharma Jee “Salil” Brijwasi was born on 01th dec’1989 in a Brahmin family of a small village called Saiyan located in distance of 27 Km. From Agra city on Agra – Gwalior national highway,district Agra U.P. .His father , a hard working and kind Brahmin Shri Ramsewak Sharma and his mother Smt. Guddi Devi, a house wife lady but a believer of Shreemad Bhagawat Mahapuran , were filled with god’s grace , mercy and happiness on his birth as a 1st child in a family.

Education

Hit Umesh Chandra Sharma Jee “Salil” Brijwasi did his schooling in DHARAM SHANGH SANSKRIT MAHA VIDYALAYA RAMAN RETI, VRINDAVAN, MATHURA, UP. He was very good in his studies and was one of the most brilliant students in the school. His teachers astonished by his uncanny hold in Sanskrit, besides other subjects,. They prophesied that the boy would do proud to his family and village.

Knowledge of Scriptures

At the age of 10 years, Hit Shastri Jee “Salil” Brijwasi used to read out Bhagawat, Ramayan, Gita, Shiv Purana etc. to his father every day. This repeated and regular narration of the texts of shastras got imprinted in his memory. Child Umesh never missed opportunities of attending religious sermons , kathas ,programmes taking place in the neighrbourhood. He stunned the people around by giving examples from Gita at such a tender age.

Study in Vrindavan

While carrying on his school studies and “inspiring” people to lead a righteous and pure life, Hit Shastri Jee “Salil” Brijwasi began to feel in his heart that his mission in life was entirely different and his destination lay in “Adhyatam”. Shri Shri 1008 Pandit Rajvanshi Dewedi initiated him into the divine language of Sanskrit and taught him most lovingly like his own son. Hit Umesh Chandra Sharma Jee “Salil” Brijwasi took diksha from shri shri 1008 Rajvanshi Dewedi ji Maharaj. Here in the Ashram, Shastri Jee did in-depth study of Bhagawat and Vedas etc and got Diksha (spiritual initiation) from Radhavallabh Sampraday.

Hit Umesh Chandra Sharma Jee “Salil” Brijwasi spent his life’s past 15 years around swadhyay, discourses, katha vachan, religious education and welfare of people. He is a philanthrope always propagate the ideals of Hindu dharma and work for the welfare of people.

Hit Shastri Jee “Salil” Brijwasi always had an inclination towards spirituality. At a very tender age, he was an avid reader of scriptures like Ram Charitra Manas, Shrimad Bhagwat and Gurbaani. He has been delivering spiritual discourses, since 2004 on ‘Bhakti Yoga’. He elucidates ‘Seva’ as the purest form of love towards the divine power. He has been actively conducting interactive sessions for youth on various forums encouraging them to be master of their own self. With time, as an inspiration he introduced many lives to the path filled with eternal love and devotion.He is a guide, teacher and friend to all who are seeking eternal truth and striving for meaningful life. His simplicity enables people to establish a deeper connect with him. His thoughts and morals ascribe for discipline, introspection and deep self-connection through focus and ease. His doctrine is widely accepted and practiced especially by youth. He speaks from the voice of experience and touches the deepest cords of the contemporary minds. Dedicated to the holistic well-being of humanity Hit Shastri Jee “Salil” Brijwasi accredits all his learning to Saints and surrenders it in the lotus feet of his Almighty Supreme. It is his intense self connection, blessings of saints and his faith on eternal force which motivates him to serve towards his ideology of “Sab so Hita”, meaning well-being for all. He often quotes, “It is a journey from self to inner self. A journey from Confusion to Conclusion”.

Along this path, he came to be known as Hit Shastri Jee “Salil” Brijwasi. He recite and propagate Shrimad Bhagawat Katha at a age of 15 in Yamuna Nagar, Punjab by the blessings and consent of his Guru. Thousands of people congregated at this village when they came to know that a young 15 years child with divine glow on his face was speaking on Bhagawat in an extraordinary way with a rare style and expressions. He amazed everybody around him including his guru.

Shrimad Bhagawat Katha

Shrimad Bhagawat Puraan is an ancient sanskrit epic. It is attributed to the hindu sage Ved Vyas and forms an important part of the hindu smrti. It depicts the all characters of Lord Krishna, Shrimad Bhagawat is a set of Devotion and Detachment. Shrimad Bhagawat is a history of different incarnation lord shri Krishna. Shrimad Bhagawat is emanation epic from Lord Shri Krishna. Shrimad Bhagawat is holy love epic of Lord Shri Krishna.

 Jay Radha Madhav

About Trust

राधा माधव सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट, 2014 में स्थापित किया गया जो कि हित उमेश चन्द्र शर्मा जी “सलिल” बृजवासी के दिव्य मार्ग दर्शन में चल रहा है जो पूरी तरह से आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से जनता की सेवा में लगे हुए हैं |

राधा माधव सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट हित उमेश चन्द्र शर्मा जी “सलिल” बृजवासी के मिशन की स्थिर स्थापना करने  के लिए निरन्तर काम कर रहा है |

यह ट्रस्ट भारतीय न्याय अधिनियम के अनुसार रजिस्टर्ड है  ! इस ट्रस्ट का कार्य क्षेत्र  सम्पूर्ण भारत वर्ष है |

आयकर अधिनियम 1961 की धारा "80G" के अधीन रजिस्टर्ड है |

राधा माधव सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के उद्देश्य:

ट्रस्ट हर प्रकार जन कल्याण कारी कार्य व रास्ट्रीय विकास व राष्ट्र हित मे सहयोग करेगा |
जन सामान्य के कल्याण हेतु कार्य करते हुए जन समस्याओ को पत्र-पत्रिकाओ,समाचार पत्रों मे प्रकाशन कर शासन तक पहुंचाना एवं जनहित विज्ञापनो का प्रचार प्रसार एवं प्रकाशन कर नागरिकों को जनजाग्रति पैदा करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य परिवार कल्याण विभाग के सहयोग से परिवार, निशुल्क टीकाकरण प्रोग्राम चलाना तथा धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना कर निर्धन नागरिको के लिए निशुल्क चिकित्सा आदि की समुचित व्यवस्था उनकी सहायता करना तथा मर्ज के अनुसार चिकित्सा हेतु उपकरण व मशीन आदि आयात करना व बहुमूल्य औषधि भी आयात करना |
नागरिकों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने हेतु व उनके विभिन्न रोगों के इलाज के लिए स्वास्थ्य अनुसंधान एवं विकास संस्थापना की स्थापना कर नागरिकों के जीवन को सुखमय बनाना |
ट्रस्ट के उद्देश्य समाज की सुविधा के लिए मुसाफिर खाना सामाजिक कार्यों हेतु कम्यूनिटी काल बनवाना व उसका विधिवत संचालन करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य निर्धन वेसहरा लड़कियो की शादियां कराने मे सहयोग करना व ऐसी शादियों के लिए ट्रस्ट की ओर से दहेज़ मुक्त सामूहिक विवाह सम्पन्न करना |
ट्रस्ट जन सामान्य मे अध्यात्मिक चिन्तन ज्ञान का प्रसार एवं समाज मे व्याप्त कुसंगातियो व कुरीतियों को दूर करने व शिक्षा का उत्तरोक्तर का प्रयास करेगा |
ट्रस्ट वर्तमान मे प्रचलित भ्रामक रीती रिवाजो रूड़ी वादी परम्पराओ से समाज को मुक्ति दिलाने का कार्य करेगा |
ट्रस्ट जन मानुष में फैली हुई अज्ञानता, निरक्षरता के निवारण हेतु प्रयत्ननशील रहेगा |
सामान्य उद्देश्यों एवं क्रिया कलापों वाली संस्थाओ, समितियों, ट्रस्ट आदि के कार्यों मे सभी प्रकार से सहायता करना, संरक्षण प्रदान करना एवं आवश्यकतानुसार उक्त संस्थाओं का ट्रस्ट मे विलय करना |
विकसित करने हेतु क्षेत्र एवं अन्य क्षेत्रों मे विभिन्न प्रकार के आयोजन करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य किसी भी क्षेत्र में दैवी आपदाओ जैसे भूकंप बाड, सूखाग्रस्त, एवं अन्य दैवी प्राकृतिक आपदा क्षेत्रों में निशुल्क राहत सहायता शिविर लगाना व पीड़ित लोगो की मदद करना |
ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य जनता मे शिक्षा के प्रति जागरूकता पैदा करना तथा शिक्षा का प्रचार प्रसार करना एवं विद्यालयों/उच्च शिक्षा संस्थानों तकनीकी एवं इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना कर शिक्षा का प्रचार प्रसार करना, छात्र-छात्राओं को छात्रव्रत्तियाँ दिलाना तथा उनकी सुविधा हेतु पुस्तकालय, वाचनालय, छात्रावास एवं क्रीडा केन्द्र आदि की समुचित व्यवस्था करना, व निशुल्क कोचिंग क्लास लगवाना |
ट्रस्ट का उद्देश्य असहाय वृद्धजनों एवं विधवा महिलाओ के कल्याण हेतु कार्य करना एवं वृद्धजनों तथा विधवा महिलाए जो निराश्रित है उनको सरकार से पेंशन दिलवाना तथा उनके लिए आश्रय स्थल एवं वृध्दाश्रम की स्थापना कर उसका विथिवत संचालन करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य केंद्र एवं राज्य सरकारें, समाज कल्याण बोर्ड, कपार्ट, नावार्ड अल्पसंखयक आयोग/बोर्ड, वफ़्फ़ बोर्ड आदि के वित्तीय सहयोग से बेरोजगार निर्बल वर्ग के लोगो के उत्थान हेतु चलाई जा रही विभिन्न शिक्षण-प्रशिक्षण योजनाओं जैसे सिलाई , कड़ाई , बुनाई , हस्तशिल्पकला  , वास्तुकला , दस्तकारी, दरी, कालीन, ड्राइंग, पेंटिंग कला प्रशिक्षण तथा टंकण, आशुलिपि, एवं कम्प्युटर प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना कर बेरोजगार युवक-युवतियों निराश्रित एवं परित्यागिता महिलाओं व अनाथों एवं विकलांगों बच्चों को प्रशिक्षण देना तथा आंगनबाड़ी, बालवाड़ी, महिला विकास कार्यक्रम को संचालित कर पिछड़े वर्ग का उत्थान करना एवं उन्हे स्वावलंबी नागरिक बनाना तथा प्रशिक्षण के लिए मशीनों एवं उपकरणो एवं कच्चे माल का आयात करना एवं तैयार माल को देश विदेश के बाज़ार मे निर्यात करना उससे प्राप्त आय को संस्था के हितार्थ उद्देश्यों की पूर्ति एवं चैरिटेबल कार्यों पर व्यय करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य समय-समय पर सेमिनार कार्यक्रमों जाग्रति शिविरों एवं गोष्ठियों व सभाओं तथा सांस्कृति कार्यक्रमों का आयोजन कर लोगों मे जाग्रति पैदा करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य युवक-युवतियों को आत्म निर्भर बनाने हेतु सुलभ ग्रामोद्योग की संस्थापना कर उसके शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था कर उन्हे प्रशिक्षित कर उन्हे रोजगार दिलाना | इस संबंध मे आवश्यकतानुसार विदेशो मे उद्योग संबंधी कच्चा माल आयत करना व तैयार माल को देश विदेश के विभिन्न बाज़ारों मे निर्यात करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य पर्यावरण प्रोग्राम में सरकार का सहयोग कर उसे सफल बनाने का प्रयास सफल करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य पिछड़े हुए इलाकों एवं मलिन बस्तियों मे जागरूकता एवं स्वछता जैसे प्रोग्राम चलाकर लोगों को जागरूकता पैदा करना तथा उन्हे समाज की मुख्य धारा से जोड़ना तथा उनके विकास हेतु चलाई जा रही विकास योजनाओं एवं कार्यक्रमों को संचालित करना व उन्हे इससे अवगत करना |
ट्रस्ट पूर्णतया गैर राजनीतिक होगा और समिति किसी राजनीति आदि से सम्बन्ध नहीं रखेगी |
यह कि ट्रस्ट द्वारा ट्रस्टियों के मित्र समाज के व्यक्ति व उनके साथ शिक्षा प्राप्त लोगों को व उनके परिवारों को पड़ाई व जीवन यापन हेतु व अन्य प्रकार कि मदद करना |
ट्रस्ट हर प्रकार से गौ कल्याणकारी कार्य व गौ हित व राष्ट्र हित मे कार्य करेगा |
ट्रस्ट का उद्देश्य गौ माता के कल्याण हेतु कार्य करते हुए गौ सम्बन्धी समस्याओ को पत्र-पत्रिकाओ समाचार पत्रों का प्रकाशन कर शासन प्रशासन तक पहुचाना एवं गौ हितार्थ विज्ञापनों का प्रचार प्रसार एवं प्रकाशन कर नागरिको मे गौ के प्रति जाग्रति पैदा करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य गायों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने हेतु व उनके विभिन्न रोगों के इलाज के लिए पशु चिकित्सा अनुसन्धान शाला की स्थापना कर गायों को रोग मुक्त एवं स्वस्थ रखना |
ट्रस्ट का उद्देश्य निरीह एवं आवारा गायों के लिए चारे की व्यवस्था करना एवं उनकी विधिवत देखभाल करना |
ट्रस्ट का उद्देश्य वृद्ध एवं असहाय गायों को जो कि मालिक के लिए बोझ सामान है जिनको आवारा या कट्टीखाने मे काटने के लिए दे दिया जाता है उनका भारतीय संस्कृति को ध्यान मे रखते हुए इन्तकाल तक का देखरेख का जिम्मा ट्रस्ट का होगा |
ट्रस्ट का उद्देश्य उन सभी कुरीतियों का पूर्णतः विरोध करना है, जिसके तहत गौमाता के दूध न देने पर अर्थात किसी काम के न रहने पर उन्हें बोझ समझ कर कसाई के हवाले कर दिया जाता है उनकी रक्षा करना है |
ट्रस्ट का उद्देश्य सम्पूर्ण भारत वर्ष को गायों के महत्व को याद दिलाते हुए उनपर हो रहे अत्याचारों को रोकना है |
उपरोक्त ट्रस्ट का गठन साधारण जनता के हितों व लाभ के लिए किया गया है ट्रस्ट द्वारा मुख्य रूप से शिक्षण संस्थानो का संचालन किया जाना वृद्धों,निर्बलों,असहायों,विकलांगों,परित्यक्ता,महिलाओं व अनाथ बच्चों की सहायता करना, रोगी आदि के रोग निवारण हेतु तत्परता दिखाना व भरण पोषण का खर्च वहन करना व चिकित्सालय की स्थापना करना, व ट्रस्ट सम्पत्तियों व भवनों का जीर्णोद्दार करने व निर्धन कन्याओं के विवाह आदि करवाना व यथा समय निर्धनों को दान आदि देने का कार्य तथा वृद्ध, रोगी गायो की सेवा करना ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य होगा एवं ट्रस्ट द्वारा ग्रामीण विकास हेतु ग्रामीण जनता के सभी आवश्यक सामाजिक कार्य किए जायेंगे |

जय राधा माधव

Shree Radhavallabh Lal
Shree Radhavallabh Lal An Embodiment Of Love

Love in its tangible form appeared as Shree Radhavallabh Lal in Shree Vishvanath’s (Lord Shiva) heart. There is no distinction between the Rasik Saints’ ultimate wealth Shree Radhavallabh Lal and the element of unconditional divine love. Love is the basis of this creation, it is in the beginning, middle and the end.

The significance of ‘Hita’ implying unconditional love that is everlasting and omnipresent is universally accepted. Love is the most natural and definitive means to reach out to God. The veil between a true devotee and the divine is uncovered with pure absolute love. It is only in the state of love wherein God becomes oblivious of His Godliness and succumbs to the will of His devotee. Love is the true nature of a being. Till the being does not unconditionally accepts his true nature he cannot achieve fulfilment and cannot experience divine love.The adoration of Shree Radhavallabh Lal is the adoration of absolute love. The obtainment of the divine is inconceivable till the being is pure from within.

Kabir established this beautifully in this couplet,
“Kabira maan nirmal bhayaa jo Ganga ka neer, pichhe pichhe Hari phire kahat kahat Kabir Kabir”
(Kabir’s heart is now pure like the water of the Ganga and Hari (God) follows him saying Kabir, Kabir)

Tulsidas’s quatrain expresses his path of attainment of the divine, he wrote,
“Nirmal man jan so mohi pava, mohi kapat, chhal, chhidra na bhaava”

I (God) only receive those with a pure heart, I (God) do not like those filled with lies, deceit and those lacking capacity to receive me. Implying that it is not possible to attain God without being pure of heart. Love is the only true emotion which has the ability to wash away the impurities that have accumulated over many lifetimes. Love alone has the capacity that can make divine love appear in the heart: turn a drop into an ocean. But for love to be depicted it needs a beautiful form and for that Shree Radhavallabh emerged. God has 24 incarnations and Shree Krishna’s form is the supreme personality of GOD head himself. The remaining ‘avtaars’ (incarnations) have emotional limitations to connect with the varied emotions of a being. Its only with Shree Krishna that a devotee is free to establish any form of connection of love, be it as a child, a friend or a lover. Within these forms of connection, the emotion of ‘dasya’(service), vatsalya (parental love), ‘sakha’(friend), ‘kaant’ (Gopi’s love) are dominant.

Shree Radha is an epitome of unconditional love, compassion and worshipped by Shree Krishna himself. In this mesmerising periphery of Vrindavan, Shree Radha is “Rasa Murti” and Shree Krishna is “Bhaav Murti”. But in actuality both are an expression of one love and this duality of expression is just for the fulfillment of ‘Lilas’(the bliss of which increases with every moment). Shree Radha is ‘Rasa’ personified and at the same time the Vedanta philosphy mentions the supreme ‘Raso Vaisa’. So, Shree Radha is supreme here. She is the “Guru Tatava” as well. She is the light of grace, which makes the ‘jeevatman’ (human being) eligible for this supreme love. This undisclosed secret was revealed 500 years ago by the founder of the Radhavallabh sect, Shree Hita Harivansh Mahaprabhu, a dear ‘sakhi’ (maiden friend) of Shree Radha and Shree Krishna.

Shree Radha and Shree Krishna’s most intimate companion (sakhi) Vanshi (flute) incarnated as Shree Hita Harivansh Mahaprabhu for the welfare of the humanity suffering in Kaliyuga. It was the grace of Lalita sakhi that the’Vanshi’ appeared on this earth, it was her humble persuasion to Shree Radha and Shree Krishna to grace the being with their love and transcendental ‘lilas’(pastimes), for which Mahaprabhu appeared in this world.
Shree Harivansh Mahaprabhu is that transcendental flow of celestial love and to bestow this nectar of love for welfare of humanity, Mahaprabuhu ji established the deity of Shree Radhavallabh Lal (whom he had received as the dowry gift from Brahman Atmadev) at Madan Ter in Shree Vrindavan Dham. By lovingly serving the divine couple as their maiden-friends in the eight-time serving process (Ashtayam seva), he established the attribute of love as a form of devotion. Love as a form of devotion itself has also been called ‘Dashdha Bhakti’ (Tenth step of bhakti which comes after nine steps of bhakti ‘Navdha Bhakti’). This devotion process is that stage of self-immersion where the divine couple are at the will of their maiden friends and are eternally dependent on them. This form of ‘rasa’ nectar is based on the worship of beauty. Shree Radhavallabh Lal, is one soul with two bodies, whose beauty is so alluring that with darshan itself melts the heart of most unyeilding beings.

Shree Radhavallabh Lal is an ocean of beauty where waves of divine love are eternally flowing and are always increasing. Their darshan stirs something within and heart starts experiencing an outpour of divine love.The presence of Shree Radhavallabh Lal and his proximity makes one’s life self reliant and free of any dualities. By doing the ‘parikrama’(circumambulation) of his divine form from head to toe, the being is spontaneously filled with divine love. For the one who seeks the lotus feet of the divine couple, should seek shelter in Shree Vrindavan Dham, as that is their own divine abode and of Shree Yamuna, who carries within it the unguents of sandal (angraag) and is witness to the couple’s divine pastimes. She purifies the being from all kinds of miseries.

Shree Vrindavan Dham’s tree-branches and leaves, that are drenched with the love of divine couple, and the ‘raj’(dust) of Vrindavan, that is blessed with the eternal flow of the nectar of love from Priyaji’s (Radharani’s) lotus feet- taking their shelter is absolutely essential. The form of love is supremely pure while the subjects of this material world are impure. Hence except the God of love, no other can receive this emotion of the being. Hence this love as a form of devotion should be lovingly inculcated in association with the Rasiks of Vrindavan, bearing no other desires, being free from shackles of knowledge and actions, being completely aligned with divine intentions, to pursue absolute love as a form of devotion.

Jay Radha Madhav

About Us


 WELCOME TO OUR NGO “Radha Madhav Seva Charitable Trust is a charitable trust registered in 2014 under the provisions of the Indian Trust Act and Section “80G” of the Income...
Read More